शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

वोट बैंक की चापलूसी का एक और कम्युनिस्ट कारनामा

देखिये हमारे 'सेकुलर' कम्युनिस्टों को सत्ता के लिए क्या-क्या नहीं करना पड़ रहा है.
रूठे मुस्लिमों को मनाने निकलेंगे वामदल Aug 13, 10:37 pm
नई दिल्ली [टी ब्रजेश]। लोकसभा चुनाव में मुस्लिमों की नाराजगी का खामियाजा भुगत चुके वामदल एक बार फिर उन पर डोरे डालने में जुट गए हैं। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले मुस्लिमों को वापस अपने खेमे में लाने की रणनीति वामपंथी कुनबे में जोर-शोर से बन रही है। वामदल विशेष अभियान के जरिए मुस्लिम वोटरों को लुभाएंगे, तो वहीं पश्चिम बंगाल की वाममोर्चा सरकार भूमि, रोजगार और शिक्षा को लेकर अपनी नीति में व्यापक सुधार के सहारे उन्हें अपने पाले में करने की कोशिश करेगी। माकपा के मुस्लिम नेताओं का जत्था अभी से अल्पसंख्यकों के बीच वामदलों की छवि सुधारने में जुटेगा। इस विशेष अभियान के तहत माकपा के कामरेड घूम-घूम कर यह बताएंगे कि कैसे बंगाल सरकार के कई फैसले मुस्लिम समुदाय के हित को ध्यान में रख कर किए गए थे। वहीं मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य कुछ ऐसे फैसले करते नजर आएंगे जिनसे माकपा के पारंपरिक वोट बैंक माने जाने वाले इस समुदाय की सहानुभूति वापस हासिल की जा सके। सूत्रों के अनुसार माकपा नेतृत्व ऐसे मुस्लिम नेताओं की सूची तैयार कर रहा है जिनकी अपने समुदाय में अच्छी पैठ हो। साथ ही उन इलाकों को छांटा जा रहा है जहां मुस्लिम मतदाताओं की तादाद निर्णायक हो। जानकारों की मानें तो बंगाल की तकरीबन 18 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां 20 फीसदी वोटर मुस्लिम समुदाय के हैं। जाहिर है इन सीटों में पड़ने वाले विधानसभा क्षेत्रों पर वाम दलों की विशेष नजर है। माकपा के मुस्लिम चेहरों में बंगाल के भूमि सुधार मंत्री अब्दुर रज्जाक मोल्लाह का नाम विशेष तौर पर लिया जा रहा है। अगर उन्हें अभियान में अहम भूमिका मिल जाए तो अचरज नहीं होना चाहिए। वैसे लोकसभा चुनाव के बाद बुद्धदेव और उनकी सरकार पर हमलावर रहे मोल्लाह तो माकपा नेतृत्व के निशाने पर ठीक उसी तरह रहे जैसे दिवंगत परिवहन मंत्री सुभाष चक्रवर्ती। लेकिन अब माकपा नेतृत्व को अहसास हो रहा है कि भूमि अधिग्रहण का विरोध कर मोल्लाह ने मुस्लिमों के बीच जो छवि बनाई है उसे भुनाने का मौका आ गया है। भूमि अधिग्रहण मंत्रालय का जिम्मा मोल्लाह को सौंप कर माकपा ने पहले ही मुस्लिमों को अपनी गलती का अहसास होने का संकेत दे दिया था। फिर मुहम्मद सलीम भी इस लिहाज से माकपा नेतृत्व को खासा पसंद आ रहे हैं। वहीं राज्य सभा सदस्य मुहम्मद अमीन की प्रभावी भाषण शैली को भी माकपा खूब आजमाना चाह रही है। अमेरिका के खिलाफ जहर बुझे व्यंग्य तीर मारने में निपुण अमीन मुस्लिमों के समक्ष इराक और अफगानिस्तान में वाशिंगटन की 'नकारात्मक' भूमिका का चित्र खींचते नजर आ सकते हैं। वहीं श्रमिकों के मुद्दों को गहराई से पहचानने वाले हन्नान मोल्लाह भी विशेष अभियान में अपनी सेवाएं देते दिख सकते हैं। ऐसे ही कई मुस्लिम चेहरों का चुनाव माकपा को करना है। इस माह के अंत में प्रस्तावित पोलित ब्यूरो की बैठक में इस पर विस्तृत चर्चा होनी है। माकपा महासचिव प्रकाश करात अपने वरिष्ठ सदस्यों के साथ तय करेंगे कि विशेष अभियान का जिम्मा किसे देने में सबसे ज्यादा फायदा होगा। माकपा रणनीतिकारों का मानना है कि केवल अमेरिका को खरी खोटी सुनाने से ही नहीं चलेगा, बल्कि वाममोर्चा सरकार को कुछ करके भी दिखाना होगा ताकि मुस्लिमों को रिझाने के लिए पार्टी को कुछ ठोस आधार मिल सके। (साभार: दैनिक जागरण)

4 टिप्‍पणियां:

  1. मैनें अपने सभी ब्लागों जैसे ‘मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ को एक ही ब्लाग "मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी "में पिरो दिया है।
    आप का स्वागत है...

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  2. सत्य वचन !! कृपया http://rashtrasamidha.blogspot.com/ को भविष्य में सहयोग करें . आवश्यकता है इस राष्ट्रयज्ञ में समिधा बन ने की !!

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  3. Mr jeet, you write quite logical with deep arguments,
    please keep it continue. Realy fantastic.


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    Shiv Ratan Gupta
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